How to Prepare CCNA Exams ? हिंदी | CCNA HINDI

दुनियां में CCNA बहुत ही रेस्पेक्टेद सर्टिफिकेशन में से एक है | इसका सर्टिफिकेशन किसी भी स्टूडेंट का करियर बूस्ट करता है और उसको आगे बढने के चांसेस बढ़ जाते है | और प्रोफेशनल करियर के लिए अगर स्टूडेंट को नेटवर्किंग में ही जाना है तो उसको सर्टिफिकेट करना जरुरी हो जाता है | और जो ccna की तेयारी कर रहे है उनके लिए में ये आर्टिकल लेकर आया हु इसमें में कुछ टिप्स बता रहा हूँ शायद आपके काम आ जाये |


ऐसा नहीं है कि आपको एग्जाम पास करने के लिए घंटों कठिन परिषम करना पड़ेगा | बाकि एग्जाम की तरह की बस आपको रोज़ थोडा थोडा पढना है और साथ ही साथ लेटेस्ट नेटवर्किंग टेक्नोलॉजी से अपडेट रहना है | बहुत सारी बुक्स है जो आप पढ़ सकते है और ऑनलाइन भी काफी मटेरियल अवेलेबल है, मेरा ये ब्लॉग भी ccna की तेयारी के लिए काफी है अगर आप डेली पढ़ रहे है तो आप सब्सक्राइब कर सकते है मेरे ब्लॉग तो ताकि आपको रोज़ आपके Mail ID पर टिप्स या फिर कोर्स का कोई हिस्सा प्राप्त हो जाये | 

CCNA बहुत बड़ा है

CCNA का एग्जाम CISCO के द्वारा करवाया जाता है और और इसके बहुत सरे टॉपिक्स है | इसमें काफी प्रोटोकॉल्स है पर इनमे सबसे बड़ा TCP/IP है | बहुत ज्यादा पढने के बाद भी ऐसा लगता है कि एग्जाम पास नहीं कर पाएंगे | आपको ये समझना होगा की आपको ICDN पर फोकस करना पड़ेगा क्योंकि ये CISCO CCNA के सभी एग्जाम का बेस है |


PRACTICAL EXPERIENCE

CCNA एग्जाम पास करने के लिए जो जरुरी चीज़ है वो ये है कि आपको थ्योरेटिकल और प्रैक्टिकल दोनों की अच्छी नॉलेज हो | पढाई के लिए प्रैक्टिकल नॉलेज का होना तो जरुरी है ही साथ ही साथ थ्योरेटिकल नॉलेज आपको तब काम आती है जब आप किसी कंपनी में जॉब करते है, वहां आने वाली नेटवर्किंग प्रोब्लेम्स को सोल्वे करने कल लिए | 

CCNA एग्जाम तेज़ी के साथ

एक ccna के एग्जाम में आपको 50-60 प्रश्न सोल्वे करने पढ़ते है वो भी सिर्फ 90 मिनट के अन्दर | एग्जाम में आगे बढ़ने के लिए आपको लगातार प्रैक्टिस की जरुरत पड़ती है | चाहे आपको कितनी ही जानकारी हो पर जब एग्जाम में प्रशन हल करने पड़ते है तो अच्छे अच्छे को पसीने निकल आते है | एग्जाम में रियल वर्ल्ड में आने वाली परेशानियों से जुड़े हुए प्रश्न भी आते है जिनको धेर्य के साथ हल करना पड़ता है |


नेटवर्किंग सक्सेस

ccna एग्जाम न सिर्फ आपके लिए नेटवर्किंग इंडस्ट्री के रास्ते खोलता है बल्कि आपको दुनिया के लिए आपको एक नेटवर्किंग प्रोफेशनल भी बनाता है | अगर आपके पास नॉलेज है पर सर्टिफिकेट नहीं तो आप प्रोफेशनल में नहीं गिने जाते बस यही दुनियां की रीत है आप माने या ना माने |

दिमागी तौर पर तेयारी

आपको ये जानना जरुरी है की आप ccna क्यों करना चाहते है और ये सर्टिफिकेट करने के बाद आपके लिए और कौनसे नए रास्ते खुलेंगे | ये आपको ccna एग्जाम के लिए दिमाग से तेयार करेगा | अपने एग्जाम पास करने का समय निश्चित कर लें जैसे - 6 महीने के अन्दर | एग्जाम के लिए समय दीजिये और अगर आप सोशल एक्टिविटीज जादा करते है तो शायद थोरा कम करना पड़ेगा | आपके रिश्तेदारों और दोस्तों को समझना होगा की आप कुछ करने की कोशिश कर रहे है, हाँ एक पर एग्जाम पास करने के बाद आपके पास समय ही समय है पूरी दुनिया के लिए |


एग्जाम के लिए सही मटेरियल

एग्जाम मटेरियल से जुडी हुई यहाँ पर बहुत सारी ग़लतफ़हमियाँ है सबकी अपनी अपनी धारणा है | आपको इधर उधर भागने की जरुरत नहीं है की क्या करें | सिस्को के द्वारा बनायीं गयी ICND1 और ICND2 बुक्स ही काफी है | ये बुक्स पढने में भी आसन है और हर टॉपिक को डिटेल्स में समझाया गया है | एक बुक और है जो आप इस्तेमाल कर सकते है “31 Days before Your CCNA Exams” इसके द्वारा आप कमांड्स और कांसेप्ट अच्छे से समझ पाएंगे | शायद ये किताब आपके लिए अच्छी साबित हो सकती है | में ये भी कहूँगा की आप सिस्को के form में रजिस्टर करें और अपडेट रहें |


एग्जाम के पहले

आप चाहे किसी भी किताब से पढना शुरू कर रहे है सबसे पहले आपके लिए जरुरी है बाइनरी मैथमेटिक्स को अपने उन्ग्लिओं में लाये | मतलब आप दिमाग में सब कैलकुलेशन कर ले और किसी चीज़ की जरुरत आपको ना पड़े | बुक्स को अच्छे से पड़े और जो प्रैक्टिस प्रश्न उसने दिए हुए है उनको हल करना न भूले | जितना ज्यादा हो सके प्रैक्टिस करे और जितनी जल्दी हो सके हल करने की कोशिश करें |


प्रैक्टिस के समय

एग्जाम के आने से पहले प्रैक्टिस का समय निर्धारित करें और रोज़ प्रैक्टिस करें | अपने आप को बुरी से बुरी कंडीशन पर रखकर देखे कि आप कैसा परफॉर्म कर सकते है | अगर आप पूर्ण रूप से तेयार नहीं हुए तो कोई बात नहीं आप बस प्रैक्टिस जारी रखिये |


ठसाठस भरना

अब आप जब इतना आगे आ गए है तो अब पीछे नहीं मुड़ सकते | बस एग्जाम से कुछ हफ्ते पहले आप और कुछ मत कीजिये बस प्रश्न हल करिए जितने हो सके | form में या फिर इन्टरनेट पर नए प्रश्न सर्च कीजिये | और हाँ आराम भी जरुरी है तो थोडा सा आराम करिए थोडा अच्छा हल्का म्यूजिक भी सुन सकते है खली समय में | अच्छी पढाई के लिए सोना भी जरुरी है तो अच्छे से सोयिये | अगर आप ये सब करेंगे तो आपको कोई नहीं रोक सकता एग्जाम पास करने से | 

निष्कर्ष

लास्ट में यही कहना चाहूँगा की एग्जाम की तेयारी करते करते बस खुद को डेवेलोप कीजिये और नए कांसेप्ट और नयी थेओरिस सर्च करने की कोशिश करिए | आपका आखिरी मकसद यही होना चाहिए की बस एग्जाम को पास करना है कैसे भी करके | क्योंकि सबको अच्छी सैलरी और अच्छी जॉब चाहिए तो शायद आप भी वो सब पा सकते है | 

आप इनको भी पढ़ सकते है :-

References:

http://www.wikihow.com/Pass-CCNA-Certification
https://learningnetwork.cisco.com/thread/15662
http://www.techexams.net/forums/ccna-ccent/81293-how-study-ccent-ccna-tutorial.html
http://searchnetworking.techtarget.com/feature/Networking-certifications-How-to-pass-your-CCNA-exam
http://networking-link.com/how-to-pass/ccna/ 

Data Encapsulation क्या होता है ? | CCNA HINDI

Data Encapsulation

जब एक होस्ट, नेटवर्क के द्वारा किसी दुसरे होस्ट को डाटा सेंड करता है, वो डाटा एक प्रोसेस से गुजरता है और OSI मॉडल की हर लेयर पर प्रोटोकॉल की इनफार्मेशन को जोड़ दिया जाता है |

नेटवर्क में कम्यूनिकेट करने और इनफार्मेशन को एक्सचेंज करने के लिए हर लेयर 'प्रोटोकॉल डाटा यूनिट' pdu का इस्तेमाल करती है | इसके द्वारा, हर लेयर पर डाटा के साथ जो इनफार्मेशन ऐड की जाती है उसको कण्ट्रोल किया जाता है | इस pdu की इनफार्मेशन कको रिसीविंग डिवाइस की peer लेयर के द्वारा ही पढ़ा जा सकता है | पढने के बाद इसमें से pdu हटा दिया जाट है और डाटा आगे की लेयर को भेज दिया जाता है |


ध्यान रहे कि हर लेयर पर पुराना pdu हटा कर उस लेयर से सम्बंधित नया pdu जोड़ दिया जाता है और डाटा को आगे भेज दिया जाता है |

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The Cisco Three Layer Hierarchical Model

हर लेयर की कुछ विशेष जिम्मेदारियां है | और याद रहे कि ये 3 लेयर logical है फिजिकल नहीं |

The Core Layer

कोर लेयर वास्तव में नेटवर्क का कोर पार्ट है | इस लेयर का काम डाटा के बड़े अमाउंट को नेटवर्क में reliably और quickly transport करना है | इस लेयर का यही काम है कि नेटवर्क में ट्रैफिक को तेज़ी से आगे बढाना | अगर कोर लेयर फेल हो जाये तो इसका असर हर यूजर पर पड़ता है |

The Distribution Layer

the distribution layer कभी कभी work-group लेयर के नाम से भी जानी जाती है और ये एक्सेस लेयर और कोर लेयर के बीच का कम्युनिकेशन पॉइंट भी है | इस लेयर के मुख्य कार्य है वो इस प्रकार है - रोउटिंग प्रोवाइड करवाना, नेटवर्क फ़िल्टरिंग करना और WAN एक्सेस देना और यह पता लगाना कि जरुरत के समय पर कोर, पैकेट को कैसे एक्सेस करेगी |

नेटवर्क में सर्विस रिक्वेस्ट आने पर, पैकेट को आगे भेजने का सबसे तेज़ रास्ता यही निकलती है | उदहारण के लिए - एक फाइल सर्वर को कैसे भेजी जायगी |

  • Routing.
  • Implement tools, Packet Filtering and queuing.
  • Security Implementing, Network Policies, Firmwares.
  • Redistributing between Routing Protocols.
  • Defining Broadcast and multicast domains.



Access Layer

एक work group और यूजर के द्वारा नेटवर्क में रिसोर्सेज के एक्सेस पर कंट्रोल रखने का काम इसी लेयर का है | एक्सेस लेयर कभी-कभी डेस्कटॉप लेयर के नाम से भी जानी जाती है |


  • continued use of access control and policies
  • creation of seperate collision domains (segmentation)
  • work group connectivity

Ethernet Cabling हिंदी में | CCNA HINDI

फिजिकल लेयर में ईथरनेट

 

ईथरनेट सबसे पहले DIX Group के द्वारा लागू किया गया था जिसका मतलब Digital, Intel और Xerox था | इन्होने पहला LAN स्पेसिफिकेशन बनाया और लागू किया जिसका इस्तेमाल करके IEEE ने 802.3 समिति बनाई | ये 10 एमबीपीएस का नेटवर्क था और coax पर चलता था | बाद में twisted pair और फाइबर मीडिया पर भी चलने लगा |

थे EIA/TIA (Electronic Industries Alliance and the newer Telecommunications Industry Association) एक standard बॉडी है जो ईथरनेट के लिए फिजिकल स्पेसिफिकेशन बनाती है | EIA/TIA साफ़ तौर पर बताता है कि ईथरनेट में Unshielded twisted pair (UTP) केबल में (RJ) 'Registered Jack' ही इस्तेमाल किये जायेंगे | RJ45 |


Ethernet Cabling

  1. Straight-through Cable
  2. Crossover Cable
  3. Rolled Cable
केटेगरी 5 UTP केबल 100 मीटर की दूरी तक गीगाबिट की स्पीड दे सकती है | साधारणतया हम इस केबल को 100 एमबीपीएस और केटेगरी 6 की केबल को गीगाबिट के लिए इस्तेमाल करते है लेकिन केटेगरी 5 गीगाबिट के लिए और केटेगरी 6 10 गीगाबिट के लिए रेट की गयी है |
1. Straight-through Cable - इन devices को कनेक्ट करने के काम में आती है |
  • host to switch or hub
  • router to switch or hub

Straight through cable blogittttt

Device 1 - Transmit on pins 1 and 2 | Receive on Pins 3 and 6
Device 2 - Receive on Pins 1 and 2 | Transmit on Pins 3 and 6

याद रहे कि यह 10/100 एमबीपीएस ईथरनेट ओनली केबल है और गीगाबिट, वौइस् और other LAN/WAN पर काम नहीं करेगी |


2. Crossover Cable - इन devices को कनेक्ट करने के काम में आती है |
  •  switch to switch
  • hub to hub
  • host to host
  • hub to switch
  • router direct to host
  • router to router

ये भी वो ही समे वायर है पर pins अलग तरह से लगेगी |



देखें यहाँ पर हमने 1 को 1 से और 2 को 2 से कनेक्ट करने के बजाय 1 को 3 से और 2 को 6 से कनेक्ट किया है |

टिप - हो सकता है कि आप 2 switches को एक straight-केबल से कनेक्ट करे और वो कनेक्ट हो जाये क्योंकि वहां पर 'Auto detect Mechanisms' काम कर रहा होता है जिसको Automdix कहते है | लेकिन ccna exams के लिए इस mechanisms को कंसीडर नहीं किया जाता |

UTP Gigabit Wiring (1000 Base-T)

इसके चारो पेयर्स को इस्तेमाल किया जाता है जिससे हर pair अपने आप में ट्रांसमिशन करते रहें, बिना किसी रुकावट के | इसके कारण डाटा का ट्रांसमिशन और भी फ़ास्ट हो जायगा |

Gigabit Crossover blogittttt


3. Rolled Cable - हालाँकि rolled cable का, ईथरनेट नेटवर्क कनेक्शन करने में इस्तेमाल किया जाता है लेकिन हम इसको होस्ट EIA/TIA 232 इंटरफ़ेस से रूट के serial console से कनेक्ट कर सकते है | (com port)

अगर आपके पास राऊटर या स्विच है तो आपको कंप्यूटर से जोड़ने के लिए इसी केबल को इस्तेमाल करना होगा |

Rollover Blogittttt


Fiber Optic

इस केबल को मार्किट में आये हुए काफी समय हो गया है | इस प्रकार की केबल से डाटा का ट्रांसमिशन बहुत तेज़ होता है और ये गिलास या फिर प्लास्टिक से बनी होती है | इसमें लाइट वेव के द्वारा डाटा का ट्रांसमिशन होता है | फाइबर ऑप्टिक केबल को सिर्फ लम्बी दूरी के इंटरनेशनल कनेक्शन पर ही इस्तेमाल किया जाता था लेकिन अब इसका इस्तेमाल ईथरनेट नेटवर्किंग में भी होने लगा है क्योंकि UTP केबल के बाद तेज़ डाटा का ट्रांसफर इस प्रकार की केबल में ही हो रहा है |

wave form

फाइबर optic के कुछ component है 'core' कोर पार्ट ऑफ़ केबल जो लाइट वेव को होल्ड करती है और बहुत ही पतली होती है | 'cladding' जो कोर के चारो तरफ होती है और कोर को टाइट करती है, क्योंकि कोर जितना ज्यादा टाइट होगी लाइट वेव्स उतनी ही तेज़ी से आग जाएगी और स्पीड बढेगी | केबल का अगला हिस्सा buffer होता है जो cladding के ऊपर होता है और गिलास को प्रोटेक्ट करता है |

Waves भी 2 प्रकार की होती है 1) सिंगल मोड 2) मल्टी मोड

single multimode blogittttt

सिंगल मोड वेव केबल थोड़ी ज्यादा महँगी होती है, इसका cladder ज्यादा टाइट होगा है और ये लम्बी दूरी तक काम कर सकती है बजाय मल्टी मोड केबल के |

Collision Broadcast Domain हिंदी में | CCNA HINDI

Collision Domain

कोलिशन डोमेन एक नेटवर्क सेगमेंट है जिसमे कोलिशन होते है, और दूसरे शब्दों में कहें तो कोलिशन डोमेन में एक नेटवर्क के अंदर सभी devices एक ही मीडिया (shared media) से कनेक्टेड होते है और जब वे एक साथ नेटवर्क को एक्सेस करने की कोशिश करते है तो आपस में collide होते है क्योंकि shared मीडिया हाफ डुप्लेक्स होगा है और एक समय एक ही डिवाइस कुछ सेंड या रिसीव कर सकता है |

Broadcast Domain

इसका मतलब है एक नेटवर्क सेगमेंट जिसमे कुछ डिवाइस आते है, और अगर इस नेटवर्क सेगमेंट में कोई मेसेज सेंड किया जाता है तो ये ब्रॉडकास्ट मेसेज इन सभी devices के द्वारा सुना जाता है या फिर रिसीव किया जाता है |

CSMA/CD

ईथरनेट नेटवर्किंग एक प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करती है जिसको carrier sense multiple access with collision detection (csma/cd) के नाम से जाना जाता है | ये एक ही bandwidth को शेयर करके मल्टीप्ल devices को डाटा सेंड करने में मदद करती है और साथ ही साथ यह भी ध्यान रखती है की 2 devices एक साथ डाटा सेंड ना करें | आईये देखते है ये किस प्रकार से काम करता है :- जब भी ईथरनेट में कोलिशन होता है -
  1. एक जाम सिग्नल के द्वारा सभी devices को बताया जाता है कि कोलिशन हुआ है |
  2. कोलिशन अचानक से पीछे हटाने वाला अल्गोरिथम शुरू करता ( the collision invokes a random back off algorithm.) 
  3. हर डिवाइस जो कि उस नेटवर्क सेगमेंट में है, डाटा सेंड करना रोक देती है जब तक कि बेक ऑफ़ टाइम expire हो जाये |
  4. टाइम एक्सपायरी ख़त्म होने के बाद डाटा सेंड किया जाता है और सभी को इक्वल प्राथमिकता मिलती है |
पर इसके कुछ गलत इफेक्ट्स भी है जैसे - बार-बार कोलिशन और जाम से नेटवर्क प्रॉब्लम, नेटवर्क का धीमे होना और बहुत सारा congestion.


Data Link Layer पर Ethernet

डाटा लिंक लेयर पर ईथरनेट, ईथरनेट addresing के लिए रेस्पोंसीबले होता है, जो कि साधारणतया MAC और हार्डवेयर addressing के नाम से जानी जाती है | नेटवर्क लेयर से रामिंग पैकेट्स रिसीव करना और उनको आगे सेंड करने के लिए तेयार करना का काम भी ईथरनेट ही करती है |

यहाँ हम देखेंगे की ईथरनेट addressing कैसे कम करती है | ये मीडिया एक्सेस कण्ट्रोल mac का इस्तेमाल करती है जो कि हर नेटवर्क address कार्ड (NIC) में burned होता है | mac और हार्डवेयर address 48 (6 bytes) बिट का होता है और ये hexadecimal फॉर्मेट में होता है |

0000.0c12.3457
किसी भी आर्गेनाइजेशन को, organizationally unique identifier (OUI) IEEE के द्वारा ही असाइन किया जाता है | इसका एक हिस्सा 24 बिट globally administered address होता है और दूसरा हिस्सा 24 का, हर नेटवर्क पर यूनिक होता है |

सबसे ऊपर की बिट individual/group (I/G) है | अगर इसकी वैल्यू 0 है तो हम अंदाज़ा लगा सकते की डिवाइस का address, mac address है और ये किसी भी mac header के सोर्स पोर्शन में देखा जा सकता है | जब ये I हो तो हम अंदाज़ा लगा सकते है कि ये ब्रॉडकास्ट या फिर मल्टीकास्ट address हो सकता है |

दूसरी बिट Globle/Local Bit है, जो कभी कभी G/L या U/L के नाम से भी जानी जाती है | यहाँ पर U का मतलब Universal से है | अगर ये '0' हो तो इसका मतलब IEEE के द्वारा एसाइन्ड globally administered address  है और अगर '1' हो तो Locally government administered address |

इसके अलावा low आर्डर बिट '24 बिट' Locally Administered और मैन्युफैक्चरर  कोड को दिखता है | ये पोर्शन 24 0's से शुरू होकर 24 1's तक चलता रहता है जब तक कि लास्ट (16,777,216th) कार्ड का बन जाएँ |

The OSI Reference Model के बारे में | CCNA HINDI

याद रखें, The OSI रेफरेंस मॉडल एक काल्पनिक (logical) मॉडल है, ये किसी प्रकार का हार्डवेयर या फिर फिजिकल मॉडल नहीं है | वास्तव में एक दिशा-निर्देशों का समूह (set of guidelines) है जिसके तहत डेवेलपर्स, अप्लीकेशंस बना सकते है और किस नेटवर्क के अकार्डिंग रन करवा सकते है | ये एक ढांचा देता है जिसकी मदद से आप नेटवर्किंग स्टैंडर्ड्स, devices और नेटवर्किंग स्कीम लागू कर सकते है |
OSI मॉडल में 7 लेयर्स है जो 2 ग्रुप्स में बंटी हुई है | ऊपर की 3 लेयर्स ये बताती है कि अप्लीकेशंस, दूसरे devices से कैसे कम्यूनिकेट करेंगी और साथ में यूजर्स को भी | और नीचे की 4 लेयर्स ये बताती है कि सिस्टम्स के बीच में डाटा का ट्रांसमिशन कैसे होगा |

The Upper Layers

- Application - Provides a user interface.
- Presentation -(1) Present data. (2) Handling processing such as encryption.
- Session - Keeps different application date separate.

The Lower Layers

- Transport - (1) Provides reliable or unreliable delivery. (2) perform error 
  correction before retransmit.
- Network - Provides logical addressing which routers use for path 
  determination.
- Data Link - (1) Combines Packets into bytes and bytes into frames. (2) 
  Provides access to media using MAC Address. (3) Performs error detection 
  not correction.
- Physical - (1) Moves bits between devices. (2) Specifies voltage, wire speed 
  and pin-outs of cables.

OSI layer Functions

- Application - File, Print, Message, Database and Application Services
- Presentation - Data encryption, Compression and translation Services.
- Session - Dialog Control
- Transport - End to End Connection
- Network - Routing
- Data Link - Framing
- Physical - Physical Topology

The Application Layer


OSI मॉडल की application लेयर एक बिंदु निर्धारित कर देती है जहाँ से वास्तव में यूजर्स, कंप्यूटर से कम्यूनिकेट कर सकते है और जब यह पता चलता है कि नेटवर्क का उपयोग होने वाला है तो ये हरकत में आ जाती है |

IE (इन्टरनेट एक्स्प्लोरर) की परिस्थिति को लेकर देखते है :-
आप वास्तव में कंप्यूटर से नेटवर्किंग के हर भाग को हटा सकते है जैसे - TCP/IP, नेटवर्क इंटरफ़ेस कार्ड (NIC) आदि और उसके बाद भी IE से लोकल html डॉक्यूमेंट देख सकते है | लेकिन चीज़े उस समय भयंकर होगी जब आप किसी ऐसे html डॉक्यूमेंट को खोलेंगे जो किसी रिमोट लोकेशन पर हो और उसके लिए एप्लीकेशन लेयर के एक्सेस की जरुरत पड़ेगी | मूलरूप से एप्लीकेशन लेयर एक रास्ते की तरह काम करती है, एक्चुअल एप्लीकेशन, प्रोग्राम और उसके नीचे की लेयर के बीच में | और ये लेयर रास्ते उपलब्ध करवाती है जिससे इनफार्मेशन को प्रोटोकॉल के जरिये नीचे भेजा जा सके |

The Presentation Layer

जैसा इसका काम है वेसा ही इसका नाम है | ये एप्लीकेशन लेयर के लिए डाटा प्रस्तुत करती है और डाटा ट्रांसलेशन और कोड फोर्माटिंग के लिए भी उतरदायी होती है | आप इसको OSI मॉडल को ट्रांसलेटर के रूप में ले सकते है जो कि कोडिंग और ट्रांसलेशन सर्विसेज प्रोवाइड करवाती है | ये लेयर सुनिश्चित करती है कि जो डाटा एक सिस्टम की एप्लीकेशन लेयर से भेजा गया है वो दूसरे सिस्टम की एप्लीकेशन लेयर को मिला की नहीं |

The Session Layer

इस लेयर का कम है 2 एप्लीकेशन लेयर के बीच सम्बन्ध स्थापित करना, उनको मैनेज करना और जब सेशन पूरा हो जाये तो सेशन को ब्रेक करना साथ ही साथ यूजर के डाटा को अलग करना | सेशन में हो रहे डायलॉग को कण्ट्रोल में रखना भी इसी लेयर का काम है |

कंप्यूटरस की बहुत सारी एप्लीकेशन जिनको सेशन, क्लाइंट से सर्वर के बीच में बनता है, वो इसी लेयर के द्वारा अलग-अलग मोड में, सिम्पलेक्स, हाफ-डुप्लेक्स और फुल-डुप्लेक्स में को-ओर्दिनेट और आर्गनाइज्ड किये जाते है |

The Transport Layer

इस लेयर का काम है एक किसी भी डाटा को अलग अलग हिस्सों में बांटना और फिर वापस उसी प्रकार जोड़ना जैसे वह थे | इस लेयर में जो सर्विसेस उपलब्ध है उनके द्वारा ये ऊपर की लेयर से आने वाले विभिन्न प्रकार के डाटा को प्राप्त करती है और उसको जोड़कर वापस अपनी स्थिति में बदल देती है |

इस लेयर में जो प्रोटोकॉल है उनसे end-to-end स्टेशन डाटा transport सर्विसेज प्राप्त होती है और इनके द्वारा सेंडिंग होस्ट से डेस्टिनेशन होस्ट के बीच काल्पनिक कनेक्शन बनाये जाते है | जाना पहचाना जोड़ा tcp और udp प्रोटोकॉल इसी लेयर में आते है |

टांसपोर्ट लेयर, connectionless or connection oriented इन दोनों मेसे किसी एक में हो सकती है |

Connection-oriented Connection

एक अच्छा ट्रांसपोर्ट हो इसके लिए, जो डिवाइस डाटा भेजना चाह रही है सबसे पहले वो रिमोट डिवाइस के साथ एक कनेक्शन ओरिएंटेड सेशन बनाती है जो call setup or three way handshake के नाम से जाना जाता है, उसके बाद डाटा ट्रान्सफर होता है | प्रोसेस पूरा होने के बाद वर्चुअल सर्किट कनेक्शन को बंद कर दिया जाता है |

Step for Connection Oriented Session (कनेक्शन कैसे बनता है ?)

  1. सबसे पहले कनेक्शन अग्रीमेंट होता है जिसमे सेगमेंट के द्वारा सिंक्रोनाइजेशन की रिक्वेस्ट की जाती है |
  2. इसके बाद सेगमेंट की रिक्वेस्ट को स्वीकार (acknowledge) (ACK) किया जाता है रूल्स के अकार्डिंग एक कनेक्शन बनाया जाता है | रिसीवर से आने वाले सेगमेंट को एक बार सिंक्रोनाइज किया जाता है ताकि दोनों तरफ कनेक्शन बना रहे |
  3. फाइनल सेगमेंट जब सेंडर के द्वारा भेजा जाता है, वो एक तरह का acknowledgement होता है जो डेस्टिनेशन होस्ट को बताता है कि कनेक्शन अग्रीमेंट एक्सेप्ट कर लिया गया है और अब वास्तविक कनेक्शन बना के डाटा ट्रांसफर किया जा सकता है |
पर तब क्या होता है जब एक सिस्टम के द्वारा तेज़ी से डाटा सेंड किया जाता है, इस कनेक्शन में रिसीवर के द्वारा रिसीव किया गया डाटा एक मेमोरी में सेव कर लिया जाता है जिसे buffer कहा जाता है | पर buffer की भी एक सीमा होती है तो ओवरफ्लो होने पर आने वाले डाटा को रोक दिया जाता है |

Flow Control

फ्लो कण्ट्रोल का काम है, सेंडिंग होस्ट के द्वारा सेंड किया गया डाटा को रिसीविंग होस्ट पर आने तक कण्ट्रोल करना |
ये इस तरह से काम करता है, सेंडिंग होस्ट के द्वारा डाटा बार-बार भेजा जाता है और रिसीविंग होस्ट उसको जल्दी से जल्दी प्रोसेस नहीं कर पाता और डाटा ओवरफ्लो हो जाता है तब फ्लो कण्ट्रोल के द्वारा सेंडिंग होस्ट को एक सिग्नल भेजा जाता है जिसमे "not ready" इंडिकेटर होता है इसका मतलब सेंडिंग होस्ट को निर्देश दिया जाता है कि थोड़ी देर के लिए डाटा सेंडिंग को रोक दे जब तक पुराने डाटा का प्रोसेस पूरा नहीं हो जाता है |

Windowing

ideally data का आदान-प्रदान तेज़ी से और सही तरीके से होता है | और आप अंदाज़ा लगा सकते है कि कितना बुरा होगा जब हर सेगमेंट सेंड करने के बाद रिसीविंग होस्ट से acknowledgment ली जाये | सेगमेंट की मात्रा जो कि bytes में पहचान की जाती है | इन bytes को एक transmitting मशीन आसानी से ट्रांसमिट कर सकती है बिना किसी acknowledgment के, इसी को window कहा जाता है |

Acknowledgments

अच्छी डाटा डिलीवरी वही होती है जिसमे यह सुनिश्चित कर लिया जाता है कि पूरी तरह से काम कर रहे डाटा लिंक के द्वारा भेजा गया डाटा, जो कि एक मशीन से दूसरी मशीन को भेजा जाता है, बिना किसी रुकावट के पहुँच जाये | acknowledgment गारंटी देता है कि डाटा का लोस नहीं होगा और 2 बार नहीं भेजा जायगा | और ये सब positive acknowledgment with retransmission technique से हांसिल किया जाता है, इसमें रिसीविंग होस्ट के द्वारा डाटा रिसीव करने के बाद एक acknowledgment सेंडिंग होस्ट को भेज दिया जाता है कि डाटा प्राप्त कर लिया है |

The Network Layer

नेटवर्क लेयर devices की addressing को मेनेज करती है, एक नेटवर्क में डिवाइस की लोकेशन ट्रैक करती है और डाटा को एक से दूसरी जगह भेजने के लिए सबसे अच्छे रास्ते का पता लगाती है | routers भी इसी लेयर में आते है क्यों वे लेयर 3 डिवाइस है | और एक inter network के अन्दर राऊटर अपनी रूटिंग सर्विसेज प्रदान करता है | और आईये देखते है कि राऊटर ये कैसे करता है |
जब भी राऊटर की इंटरफ़ेस पर कोई पैकेट रिसीव होता है, उसमे डेस्टिनेशन ip address चेक किया जाता है, अगर पैकेट किसी पर्टिकुलर डेस्टिनेशन के लिए नहीं होता है तो रूटिंग टेबल में इसके लिए डेस्टिनेशन नेटवर्क address ढूंढा जायगा | एक बार राऊटर एग्जिट इंटरफ़ेस ढूंढ लेता है तो पैकेट को उसमे भेज दिया जाता है इसके बाद उस पैकेट को फ्रेम में बदल कर लोकल नेटवर्क पर भेज दिया जाता है | 

अगर राऊटर को रोउटिंग टेबल में पैकेट के लिए किसी भी प्रकार की डेस्टिनेशन नेटवर्क की एंट्री नहीं मिलती है तो राऊटर के द्वारा पैकेट ड्राप कर दिए जाते है | 2 तरह के पैकेट्स नेटवर्क लेयर में इस्तेमाल किये जाते है:- 1. डाटा 2. रूट अपडेट |

डाटा पैकेट - inter network के द्वारा यूजर को डाटा भेजा जाता है | जो प्रोटोकॉल्स डाटा ट्रैफिक को सपोर्ट करते है वो routed प्रोटोकॉल्स कहलाते है |

रूट अपडेट पैकेट्स - इस तरह के पैकेट का काम नेबर के routers को अपडेट करना है, जिनसे राऊटर कनेक्टेड है | जो प्रोटोकॉल रूटिंग अपडेट सेंड करते है वो रोउटिंग प्रोटोकॉल्स कहलाते है | RIP, RIPv2, EIGRP और OSPF ये सभी रोउटिंग प्रोटोकॉल्स है |

The Data Link Layer

the data link layer, डाटा को फिजिकल ट्रांसमिशन की सुविधा देता है और साथ ही साथ एरर नोटिफिकेशन, नेटवर्क टोपोलॉजी और फ्लो कण्ट्रोल को हैंडल करता है |

इसका मतलब डाटा लिंक लेयर, हार्डवेयर address का इस्तेमाल करके ये सुनिश्चित करता है कि मेसेज LAN के अंदर प्रॉपर डिवाइस तक पहुँच कि नहीं और ये messages को फिजिकल लेयर के लिए नेटवर्क लेयर से बिट्स में ट्रांसलेट भी करता है |

डाटा लिंक लेयर मेसेज का निर्माण करता है, जो कि डाटा फ्रेम कहलाता है और साथ में कस्टमाइज्ड header को ऐड करता है जिसमे डेस्टिनेशन और सोर्स हार्डवेयर की इनफार्मेशन होती है | एक बार ये मेसेज अपनी डेस्टिनेशन पर पहुँच जाये उसके बाद ये header इनफार्मेशन हटा दी जाती है |

ये जानन आपके लिए आवश्यक है कि राऊटर, नेटवर्क लेयर पर काम करते है वो किसी भी पर्टिकुलर होस्ट की परवाह नहीं करते कि वो कहाँ पर स्थित है |

IEEE Ethernet के डाटा लिंक लेयर की 2 और सब लेयर्स है :-

Media Access Control (MAC) -

ये लेयर यह बताती है कि पैकेट्स मीडिया से कैसे भेजे जायेंगे | यहाँ पर मीडिया का एक्सेस "पहले आओ पहले पाओ" के आधार पर किया जाता है क्योंकि सब एक ही bandwidth को शेयर कर रहे होते है | फिजिकल addressing इसी लेयर में में बताई गयी है और साथ ही साथ logical topologies भी इसी लेयर में बताई गई है |

Logical Link Control (LLC) - 

इसका काम नेटवर्क लेयर प्रोटोकॉल को की पहचान करना है और फिर उनको encapsulate करना है |एक बार फ्रेम रिसीव होने के बाद LLC header, डाटा लिंक लेयर को यह बताता है कि पैकेट के साथ क्या करना है |

ये इस तरह काम करता है :- जब होस्ट एक फ्रेम रिसीव करता है तो LLC header में देखता है कि यह पैकेट कहाँ जाना है | उदहारण के लिए नेटवर्क लेयर में IP Protocol, कण्ट्रोल बिट्स की sequencing करना और फ्लो कण्ट्रोल भी इसी का काम है |


The Physical Layer

फाईनली जब हम नीचे आते है तो हम पाते है कि फिजिकल लेयर 2 चीज़े करती है बिट्स को सेंड करना और रिसीव करना |

आप जानते ही होंगे की बिट्स की वैल्यू 1 या फिर 0 होती है | विभिन्न प्रकार की मीडिया से फिजिकल लेयर डायरेक्ट कम्युनिकेशन करती है | अलग अलग प्रकार की मीडिया इन बिट्स को अलग अलग तरह से इस्तेमाल करती है | हर तरह की मीडिया के लिए अलग अलग प्रोटोकॉल है जिनका इस्तेमाल करके बिट्स का पैटर्न प्रॉपर किया जाता है और डाटा, मीडिया में कैसे एनकोड होकर जायगा, उस मीडिया की क्वालिटी की जांच परताल भी इसी लेयर में आते है |

Hubs at the Physical Layer

हब एक मल्टीप्ल port रिपीटर की तरह होता है | रिपीटर का काम होता है सिग्नल रिसीव करना, उनको amplify करना और वापस से सभी पोर्ट्स पर भेज देना, बिना डाटा को देखे |

नेटवर्किंग मॉडल्स के बारे में | CCNA HINDI

सबसे पहले थोड़ा सा इतिहास

जब नेटवर्क अस्तित्व में आया तब एक कंप्यूटर उसी कंपनी के कंप्यूटर से कनेक्ट हो सकता था | उदहारण के लिए IBM और DEC net के सिस्टम आपस में कनेक्ट नहीं हो सकते थे | 


इस प्रतिबंध को हटाने के लिए गत 1970 में International Organization for Standardization (ISO) के द्वारा एक Open System Interconnection (OSI) Reference Model बनाया गया | OSI मॉडल का मतलब था, इसकी मदद से कंपनियां ऐसे नेटवर्क उपकरण बना सके, जो आपस में इनफार्मेशन को एक्सचेंज कर सकें और ऐसे सॉफ्टवेयर जिनकी मदद से अलग-अलग कंपनी के उपकरण शांति से आपस में कनेक्ट हो जाये |

The Layered Approach


आपको समझना होगा कि रेफरेंस मॉडल एक ऐसी वैचारिक रुपरेखा है जो बताती है कि कम्युनिकेशन कैसे होना चाहिए | ये मॉडल प्रभावी कम्युनिकेशन के लिए सारे प्रोसेसेस का पता रखता है और इनको लॉजिकल ग्रुप में डिवाइड करता है, जिनको लेयर्स कहा जाता है | जब इस तरह का कोई सिस्टम तेयार किया जाता है तो उसको hierarchical or Layered Architecture कहा जाता है |

सॉफ्टवेर डेवेलपर्स के लिए भी इस मॉडल का होना जरुरी है | वे अक्सर कंप्यूटर कम्युनिकेशन प्रोसेस को समझने के लिए रिफरेन्स मॉडल को इस्तेमाल करते है इसके बाद वे समझ सकते है कि दी हुई लेयर पर कौनसा फंक्शन काम करना चाहिए | इसका मतलब है की अगर कोई किसी खास लेयर के लिए प्रोटोकॉल बना रहा है तो उनको उसी लेयर के कार्य के बारे में पता होना चाहिए | सॉफ्टवेर ऐसे होते है कि दूसरे लेयर के प्रोटोकॉल से लिंक हो जाएँ और ऐसे बनाये जाते है जो जल्दी से देप्लोय हो जाएँ और जिनसे कुछ एक्स्ट्रा काम करवाए जा सकें | इस तरह के काम को technically "Binding" कहा जाता है | और लेयर्स के बीच में जो कम्युनिकेशन प्रोसेस होता है वो किसी एक लेयर पर बाउंड हो जाता है (ग्रुप हो जाता है) |


रेफरेंस मॉडल के फायदे | Advantages of Reference Model


वेसे तो OSI मॉडल के बहुत फायदे है पर जो मुख्य है वो ये की अलग-अलग कंपनी के उपकरण आपस में कनेक्ट हो सकते है |
  1. ये नेटवर्क कम्युनिकेशन को छोटे और आसन भागो में बाँट देता है जिससे कि कॉम्पोनेन्ट डिजाईन करने में, उनको डेवेलप करने और troubleshoot करने में सहायता मिलती है |
  2. ये अलग-अलग कम्पनीज को एक नियम (standard) के तहत ही उपकरण बनाने पर जोर डालता है |
  3. ये मॉडल, इंडस्ट्री के स्टैंडर्ड्स को आगे रखते हुए, ये साफ़-साफ़ बताता है कि कौनसी लेयर पर कौनसे कार्य किये जायेंगे |
  4. ये विभिन्न प्रकार के नेटवर्क हार्डवेयर और सॉफ्टवेर को आपस में कम्युनिकेशन की इज़ाज़त देता है |
  5. जल्दी से किये गए डेवेलपमेंट से आने वाली समस्या से, ये एक लेयर से दूसरी लेयर को बचाता है |

Introduction to Access List in Hindi | CCNA HINDI | KRATINE

एक्सेस लिस्ट आवश्यक रूप से कंडीशनस की लिस्ट है जिसके द्वारा Packets का वर्गीकरण किया जाता है | और ये पैकेट्स आपको एक नेटवर्क को कण्ट्रोल करने के काम में आ सकते है |



इसका जो मुख्य काम है वो यह है कि नेटवर्क को फ़िल्टर करके unwanted ट्रेफिक को रोकना है और ये सब सिक्यूरिटी पालिसी लगा कर किया जाता है | एक्सेस लिस्ट बनाना किसी प्रोग्रामिंग के कम नहीं है | "अगर ऐसा होतो तो ऐसा, और अगर वेसा हो तो वेसा" वाली कंडीशन होती है | एक बार एक्सेस लिस्ट पालिसी लगाने के बाद राऊटर को बोल दिया जाता है कि नेटवर्क से गुजरने वाले हर पैकेट की जांच करे | जहाँ पालिसी को लगाया गया है वहां |

आइये जानते है कि एक्सेस लिस्ट में कौन-कौन से रूल्स होते है |


  • जब भी पैकेट चेक किया जाता है तो एक्सेस लिस्ट में दिए हुए रूल्स, ऊपर से नीचे की तरह, एक के बाद एक कम करते है - जैसे पहला फिर दूसरा फिर तीसरा आदि |
  • पैकेट के साथ मेचिंग करते समय अगर एक्सेस लिस्ट का कोई रुल लगा दिया जाता है रूल्स मैच कर जाता है तो वो रूल लगा दिया जाता है फिर आगे चेक नहीं किया जाता है |
  • किस भी एक्सेस लिस्ट के अन्दर सबसे लास्ट में "deny" का रूल होता है, अगर पैकेट किसी भी रूल से मैच नहीं खाता है तो पैकेट लास्ट में deny कर दिया जाता है |

एक्सेस लिस्ट के प्रकार


एक्सेस लिस्ट 2 तरह की होती है |

Standard Access List - इस प्रकार की एक्सेस लिस्ट में केवल सोर्स IP address क ही फ़िल्टर किया जाता है | मतलब सरे decisions, सोर्स IP address पर निर्भर करते है | इसका मतलब इसके द्वारा रूल्स के रूप में सभी प्रोटोकॉल्स को, रोकने और ना रोकने का ही काम किया जाता है | किसी प्रोटोकॉल को ध्यान में रखकर पैकेट की पहचान नहीं की जाती है |

Extended Access List - extended list के द्वारा किसी भी IP पैकेट के लेयर 3 और लेयर 4 के अलग-अलग दुसरे फील्ड का मुल्यांकन किया जाता है | इसके द्वारा सोर्स और डेस्टिनेशन IP address का मूल्यांकन किया जाता है नेटवर्क लेयर के header का मूल्यांकन किया जाता है और transport layer का port number का भी मुलांकन किया जाता है |

Named Access List - जैसा कि पहले बताया जा चूका हा कि एक्सेस लिस्ट सिर्फ 2 प्रकार की होती है तो फिर ये क्या है ? technicaly  नेम्ड एक्सेस लिस्ट या तो standard हो सकती है या extended | ये अलग अलग तरीके से बनायीं जाती है पर इनका काम वही है |

Inbound Access List - inbound access list जहाँ पर भी लगायी जाती है उस नेटवर्क के पैकेट बाहर निकलने से पहले एक्सेस लिस्ट के द्वारा फ़िल्टर किये जाते है |

Outbound Access List - जब इस प्रकार की एक्सेस लिस्ट नेटवर्क के बाहरी हिस्से में लगायी जाती है तो अन्दर आने वाले सभ पैकेट को अन्दर आने से पहले फ़िल्टर किया जाता है |


कुछ जरुरी बातें जिनका ध्यान रखना जरुरी है, जब आप एक्सेस लिस्ट बना और लगा रहे है |


  • आप एक इंटरफ़ेस पर, एक प्रोटोकॉल पर, और एक डायरेक्शन पर सिर्फ एक ही एक्सेस लिस्ट लगा सकते है | इसका मतलब आप सिर्फ एक inbound एक्सेस लिस्ट और सिर्फ एक ही आउटबाउंड एक्सेस लिस्ट अपने एक इंटरफ़ेस पर लगा सकते है |
  • अपनी एक्सेस लिस्ट को अच्छे से मनेजे करें ताकि सही चीजों को ऊपर डिफाइन कर सकें |
  • जब भी एक्सेस लिस्ट में कोई नयी एंट्री आप डालते है तो वो लिस्ट में नीचे की तरह आएगी |
  • आप एक्सेस लिस्ट में से किसी एक लाइन को नहीं हटा सकते है इसलिए आपके लिए जरुरी है कि आप text editor का इस्तेमाल करें |
  • अगर आपकी लिस्ट में permit any कमांड नहीं है तो सरे आने वाले पैकेट वापस भेज दिए जायेंगे (rejected) | तो लिस्ट में कम से कम एक permit statement का होना जरुरी है |
  • पहले एक्सेस लिस्ट बनाये | एक्सेस लिस्ट को लगाने से पहले टेस्ट कर ले कि ये काम भी कर रही है कि नहीं |
  • एक्सेस लिस्ट, राऊटर के द्वारा गुजरने वाले ट्राफिक को फ़िल्टर करने के लिए बनायीं गयी है, ना कि राऊटर से शुरू होने वाले trafic को |
  • जितना संभव हो सके IP standard एक्सेस लिस्ट को डेस्टिनेशन के पास ही लगाये | यही कारण है कि हम अपने नेटवर्क में standard एक्सेस लिस्ट को काम में नहीं लेते है | अगर आप लगाते है तो आप सिर्फ सोर्स के आधार पर डाटा फ़िल्टर कर पाएंगे और डेस्टिनेशन पर इसका इफ़ेक्ट पढ़ेगा |
  • IP extended लिस्ट को जितना संभव हो सके सोर्स के पास ही लगाये | क्योंकि इस प्रकार की एक्सेस लिस्ट कुछ IP addresses और प्रोटोकॉल्स को भी फ़िल्टर करती है | आप नहीं चाहेंगे कि आपका ट्रैफिक बाहर के नेटवर्क में जाकर डिनाइड हो जाये |


Standard Access List

एक standard एक्सेस लिस्ट पैकेट का सोर्स address को फ़िल्टर करके पहचान करती है | आप standard एक्सेस लिस्ट को या तो 1 से 99 कोई भी नंबर दे सकते है या फिर और ज्यादा रेंज 1300 से 1900 तक में से दे सकते है क्योंकि एक्सेस लिस्ट को नंबरों से ही अलग किया जाता है | नंबरों के आधार पर राऊटर जनता है कि कौनसे ट्रैफिक को फ़िल्टर करना है | जब इस लिस्ट को 1 से 99 और 1300 से 1900 नंबर देते है तो फिर राऊटर केवल सोर्स address को ही टेस्ट करता है | अब हम कुछ कमांड देखते है |

#access-list ?
#access-list 10 ?
#access-list deny ?
#access-list 10 deny host ?
#access-list 10 deny host 172.16.30.2


Extended Access List

जी हाँ extended लिस्ट आपका दिन बचा सकता है | क्योंकि ये लिस्ट सोर्स और डेस्टिनेशन address की देखरेख करता है | साथ ही साथ प्रोटोकॉल और पोर्ट्स के हिसाब से भी सिक्यूरिटी देता है | extended लिस्ट के द्वारा ना सिर्फ एक LAN सिक्योर किया जा सकता है बल्कि एक होस्ट और होस्ट की सर्विसेज को भी सिक्योर किया जा सकता है | जिस तरह से standard लिस्ट के लिए एक नंबर की रेंज थी उसी प्रकार एक्स्तेदेद लिस्ट में भी नंबर बताये गए है जो 100 से 199 तक है और 2000 से 2699 तक की रेंज भी extended लिस्ट के लिए ही काम में आती है |

एक बार आप नंबर चुन लेने के बाद आप उस नंबर का इस्तेमाल करके एक्सेस लिस्ट बना सकते है |

#access-list 110 ?
#access-list 110 deny

अब हम देखते है कि application layer प्रोटोकॉल को कैसे सिक्योर कर सकते है |

#access-list 110 deny tcp ?
#access-list 110 deny tcp any ?
#access-list 110 deny tcp any host 172.16.30.2 ?
#access-list 110 deny tcp any host 172.16.30.2 eq ?

Named ACL's

जैसा की मैंने पहले ही कहा था कि standard और extended लिस्ट बनाने का ये एक और तरीका है | चाहे कंपनी छोटी हो या फिर बड़ी, एक्सेस लिस्ट को मनेज़ करना बढ़ी समस्या का विषय है | एक आसान तरीका ये भी है कि अपनी एक्सेस लिस्ट को text editor में कॉपी करके पेस्ट कर लीजिये और जो भी एडिटिंग करनी ही वो करने के बाद वापस राऊटर में पेस्ट कर दीजिये | 

मान लीजिये कि आप एक एक्सेस लिस्ट सर्च कर रहे है जिसका नंबर 177 है और जो एक extended लिस्ट है और इसमें 93 लाइन्स है तो क्यों न एक नंबर देने के बजाय लिस्ट को एक नाम दिया जाये जिससे कि इसको सर्च करने में आसानी हो |

#config t
#ip access-list ?
#ip access-list standard ?
#ip access-list standard BlockSales

यहाँ पर मैंने एक स्तंदर एक्सेस लिस्ट को BlockSales नाम दिया है, कोई नंबर इस्तेमाल नहीं किया |


Remarks

एक remark keyword बहुत जरुरी है किस भी IP standard और extended एक्सेस लिस्ट के लिए | ये आपको बताती है कि आपकी एंट्री किस बारे में है |

और ये remark आप कहीं पर भी लगा सकते है, permit और deny statement के पहले या फिर बाद में | आप अपने हिसाब से चुन सकते है जिससे आपको समझने में कोई दिक्कत ना हो |

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